नाराज़ था बादल ..
भरा बैठा था ... गुस्से से ...
आंसूं रोक कर ..
बहुत साल रोका ...
बहुत बार सोचा ..
बहुत बार खुद को ही बढ़ चढ़ के टोका ..
पता था उसको कि गुस्से में वो बेकाबू हो जाता है ...
किसी बेक़सूर पर उतार देगा ...
खैर .. सालों बाद उसका दोस्त मोंसून ..
लम्बे वक़्त के लिए घर आया ...
मोंसून नेता किस्म का था ..
हर साल नहीं आता था ..
आता भी था तो एक झलक दिखला के चला जाता था ..
पर इस बार मोंसून लम्बी छुट्टी लेकर आया था ...
बहुत दिन रुका ..
सबका मन बहलाया ..
पर नेता मोंसून कि फितरत ही ख़राब थी ..
बरसो से नाराज़ बादल को घर बुलाया ...
हसी मज़ाक की ..
फिर बोला कि बड़े दिनों से तुम्हारा गरजना सुन रहे हैं ..
सुना है कि तुम बरसते नहीं .. बिजली बता रही थी ..
बादल गुस्से से काला पड़ने लगा ..
जैसे तैसे खुद को रोका ..
सोचने लगा कुछ गलत हो जाए उससे पहले हिमालय में जाकर ..
संन्यास ले लेता हूँ ..
पहली गाडी से अल्मोड़ा निकल लिया ...
पर अकेले नहीं ..
अपने गुस्से और मोंसून की खिल्ली के साथ ..
फिर एक दिन रोक नहीं पाया ..
न आंसू ..
न गुस्सा ,..
न सालो का किस्सा ..
नसें तानी थी ..
धड़कन ट्रेन सी तेज़ ..
जोर से ज़मीन पर गिरा ...
बादल फट पड़ा ..