हर शक्स इक सवाल है..
कि कैसे जिंदा है ज़िन्दगी जीकर..
शायद आहें मज़ाक लगती हैं..
तानेबानों में गुम गए हैं खुद..
सूनी सड़कें सुकून देती हैं..
रातें शरीक कर बीते दिनों की बातें
दिन ढले महफ़िल जवान करती हैं ..
अँधेरे कि बत्तियां सी बना
धीरे धीरे से आज.. मेरी रूह जलती है..
"अँधेरे कि बत्तियां सी बना
ReplyDeleteधीरे धीरे से आज.. मेरी रूह जलती है.." -- \m/ .. awesome
चलो बैठकर
ReplyDeleteसमय की सुई रोकते हैं
मुट्ठी में भरकर
उसे पीछे खींचते हैं
गाहे बगाहे टूट भी गयी
तो नींबू का स्वाद
और भरी धूप में
तौलिये के नीचे छुपकर सोने की
याद तो होगी. :)
yaadein zaroor hain.. harweekend taazi bhi hoti hain :) <3
ReplyDelete" अँधेरे कि बत्तियां सी बना
ReplyDeleteधीरे धीरे से आज.. मेरी रूह जलती है.."
वाह! उत्तम
और सवाल पूछना मना है।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
सुन्दर रचना
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