मैं लिखती थी.. जब तुम पढ़ते थे ..
ये सोचकर कि जो कह नहीं पाती.. वो बातें पन्नो पर पड़ी मिल जाए तुमको..
वो शब्द जो बन नहीं पाते.. जब बोलती हूँ बहुत.. पर कह नहीं पाती..
वो सब सुन लोगे मेरी चुप्पी कि आवाज़ में तुम..
अब न बातें हैं.. ना शब्द .. ना कोई किस्से..
अब लिखना भी क्या लिखना.. न रही मैं.. न हम ...
अब न बातें हैं.. ना शब्द .. ना कोई किस्से..
ReplyDeleteNa tum sun paye, na main kah paaya...
ReplyDeletesawaal kar na sake, jawaab bhi mil na paaaya...
socha...kisi anjaan se hi pooch lenge sawaal apna...
dekha ki door koi khada tha, shayad sach, shayad sapna...
Koi dekh raha tha meri or, bhag k pahuncha paas uske...
Aur fir maine apne aap ko apne saamne khada paaya...
ab na sawaal hai, na jawaab hai...
bas mai hun...aur mera aks (reflection) hai :)
ohho ho :) dtz some reply!!!
ReplyDeletejawab dhoondte hain kahin aur desh mein..
tu khud tere har ek sawal ka jawab hai..
कह के नहीं, लिख के बयान करतें हैं,
ReplyDeleteदिल की बात है, तुम छुओगे तभी जानोगे
use "lafz" instead of "shabd", see if it sounds better :)
wonderful thought BTW :)
बहुत खूब !
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन डिसऎबल करदें तो टिप्प्णी करने में सहूलियत हो जाये !
beautiful and super happy to meet you :)
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ....
ReplyDeleteइस समय वही कर रहे हैं जैसा आपने आदेश दिया है। अब जुगाली करना भी मना है क्या घर में बैठ कर बताइयेगा :)
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (११-०७-२०२१) को
"कुछ छंद ...चंद कविताएँ..."(चर्चा अंक- ४१२२) पर भी होगी।
ऐसा प्रतीत होता है कि हम आपसे कभी संपर्क न कर पाएँ, फिर भी, इक उम्मीद है।।।।। आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुंदर कथ्य ।
ReplyDeleteकुछ शब्दों में जीवन की पीड़ा व्यक्त कर दी। अत्यन्त प्रभावी।
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