Friday, May 20, 2022

दर्द-ए-कलम

यूँ क्यों है कि जब ख़ुशी है, मज़ा है, हंसी है, वफ़ा है 
तब कलम ढीली पड़ती है 
जब रंज है, सज़ा है , मातम सी फ़िज़ा है 
तब सरपट भागती है 

पुरानी डायरी खोलो तो लगता है कि इतना दुःख तो नहीं था 
हमारी शायरी बोलो तो लगता है कि इतना भी कब गिला था 

लिखने की बात ही यही है 
एक दूरबीन सी है  
पुरानी बात, दूर की बात, छोटी बात भी कभी बड़ी लगती है 
पर पास खड़ी ख़ुशी, मज़ा, हंसी, वफ़ा ओझल हो जाती है 

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 मई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. दर्द साझा करती है कलम ,वाह सुंदर !!

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  3. क्या बात है.. बहुत ही बढ़िया।

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  4. सोचने वाली बात तो है । अच्छा लिखा है ।

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