यूँ क्यों है कि जब ख़ुशी है, मज़ा है, हंसी है, वफ़ा है
तब कलम ढीली पड़ती है
जब रंज है, सज़ा है , मातम सी फ़िज़ा है
तब सरपट भागती है
पुरानी डायरी खोलो तो लगता है कि इतना दुःख तो नहीं था
हमारी शायरी बोलो तो लगता है कि इतना भी कब गिला था
लिखने की बात ही यही है
एक दूरबीन सी है
पुरानी बात, दूर की बात, छोटी बात भी कभी बड़ी लगती है
पर पास खड़ी ख़ुशी, मज़ा, हंसी, वफ़ा ओझल हो जाती है
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 मई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
दर्द साझा करती है कलम ,वाह सुंदर !!
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteक्या बात है.. बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसोचने वाली बात तो है । अच्छा लिखा है ।
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