तुम पर लिखना चाहती हूँ कुछ ..
डर है कि .. तुम पढ़ लोगे ..
कविता खुद को रोक रही है ..
बनते बनते भूल रही है ..
शब्द हो रहे छिन्न भिन्न सब ..
पहले खुश थे खिन्न खिन्न अब ..
स्याही बहती हर पन्ने पर ..
थोड़ी काली .. धुंदली है पर ...
कागज़ होता दो टुकडो में ..
धीरे धीरे .. हर कोने से ..
भाव हमेशा अस्तव्यस्त थे ...
पहले से भी अब उलझे हैं ..
उलटे पुल्टे सारे ये अब ..
कुछ कुछ कहते फिर भी हैं सब ..
इस कुछ कुछ को तुम मत पढना ..
पढ़ भी लो तो याद न करना ..
याद अगर आ जाए तो फिर ..
धीरे धीरे सासें भरकर...
दस तक तुम गिनती कर लेना..
कच्ची नींद का सपना था ये ..
पल दो पल का किस्सा था ये ..
हाथ कि मुट्ठी ढीली छोडो ..
रेत ही बाकी.. बहने दो अब ...
its a masterpiece..m proud of u!!!
ReplyDeletethank youu Joshi jee :)
ReplyDeleteWow! baaton ko uchit sabd mil jaayen, to kya kahna. Bahut khub.
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