Tuesday, September 21, 2010

हम


नाज़  से  चलते  हैं  ... कहीं  को  भी  तो  नहीं ...
फक्र  से  कहते  हैं .... कि  गुम  से  हैं  चुपचाप ...
हँस  के  फिर  छूते   हैं ... कि  महसूस  न  होता ...
टकटकी  सी  बाँध .. कि  धुन्दला  रहा  है  सब ...

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