बचपन
आज लिखेंगे बचपन पर
थोड़ा यादों से लेंगे, थोड़ा शायद खुद बुनकर
जो भी होगा , सादा होगा
जैसा वो था, वैसे सीधा
टेढ़ेपन में तक भोले थे
ना साज़िश, ना रंजिश लेके
छोटापन पर सपने बड़े थे
आज यहाँ हैं, क्यूंकि अड़े थे
दोस्त जो थे इतने अपने थे
घर छोटे, रिश्ते तगड़े थे
एक एक करके साल बढ़ गए
इकइक कर अब दशक बन गए
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बिलकुल सही लिखा है आपने।
ReplyDeleteक्या खूब कहा है रागिनी जी - 'थोड़ा यादों से लेंगे, थोड़ा शायद खुद बुन कर'... अद्भुत! कहना चाहूंगा कि यदि प्रस्तुत कविता के फोन्ट का रंग बैक ग्राउण्ड पृष्ठ के रंग से कुछ गहरा होता तो पढ़ना अधिक सुगम हो जाता।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबचपन की यादें ऐसी ही बढती रहती हैं ...
ReplyDeleteबचपन की यादें
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