मैं लिखती थी.. जब तुम पढ़ते थे ..
ये सोचकर कि जो कह नहीं पाती.. वो बातें पन्नो पर पड़ी मिल जाए तुमको..
वो शब्द जो बन नहीं पाते.. जब बोलती हूँ बहुत.. पर कह नहीं पाती..
वो सब सुन लोगे मेरी चुप्पी कि आवाज़ में तुम..
अब न बातें हैं.. ना शब्द .. ना कोई किस्से..
अब लिखना भी क्या लिखना.. न रही मैं.. न हम ...