Friday, May 20, 2022

दर्द-ए-कलम

यूँ क्यों है कि जब ख़ुशी है, मज़ा है, हंसी है, वफ़ा है 
तब कलम ढीली पड़ती है 
जब रंज है, सज़ा है , मातम सी फ़िज़ा है 
तब सरपट भागती है 

पुरानी डायरी खोलो तो लगता है कि इतना दुःख तो नहीं था 
हमारी शायरी बोलो तो लगता है कि इतना भी कब गिला था 

लिखने की बात ही यही है 
एक दूरबीन सी है  
पुरानी बात, दूर की बात, छोटी बात भी कभी बड़ी लगती है 
पर पास खड़ी ख़ुशी, मज़ा, हंसी, वफ़ा ओझल हो जाती है 

Friday, May 13, 2022

बचपन

बचपन 


आज लिखेंगे बचपन पर 
थोड़ा यादों से लेंगे, थोड़ा शायद खुद बुनकर 
जो भी होगा , सादा होगा 
जैसा वो था, वैसे सीधा
टेढ़ेपन में तक भोले थे 
ना साज़िश, ना रंजिश लेके
छोटापन पर सपने बड़े थे 
आज यहाँ हैं, क्यूंकि अड़े थे
दोस्त जो थे इतने अपने थे 
घर छोटे, रिश्ते तगड़े थे 
एक एक करके साल  बढ़ गए 
इकइक कर अब दशक बन गए