यूँ क्यों है कि जब ख़ुशी है, मज़ा है, हंसी है, वफ़ा है
तब कलम ढीली पड़ती है
जब रंज है, सज़ा है , मातम सी फ़िज़ा है
तब सरपट भागती है
पुरानी डायरी खोलो तो लगता है कि इतना दुःख तो नहीं था
हमारी शायरी बोलो तो लगता है कि इतना भी कब गिला था
लिखने की बात ही यही है
एक दूरबीन सी है
पुरानी बात, दूर की बात, छोटी बात भी कभी बड़ी लगती है
पर पास खड़ी ख़ुशी, मज़ा, हंसी, वफ़ा ओझल हो जाती है